देवास। ए बी रोड स्थित एक बड़े खाद्य प्रतिष्ठान से शहर के दन्तरोग चिकित्सक डॉ दीपक वर्मा ने कुछ दिनों पहले जलेबी खरीदी। जलेबी उन्हें ख़राब लगी जिसकी शिकायत उन्होंने खाद्य विभाग से की। खाद्य विभाग से आए कर्मचारी ने सैंपल लिया और उसमे फॉर्मलीन मिला दिया जिससे जलेबी के मौजूद बैक्टेरिया नष्ट हो गए। इधर खाद्य दूकान संचालक ने डॉ दीपक वर्मा को 25 लाख रूपये की मानहानि का नोटिस थमा दिया। यानि शिकायत करना भी अब जुर्म हो गया।
माइक्रोबायोलॉजी लैब तक मध्यप्रदेश में नहीं है
मामले में प्रेस वार्ता कर डॉ दीपक वर्मा ने बड़ा खुलासा किया है। मध्यप्रदेश में खाद्य प्रदार्थों में कीटाणुओं की जांच करने के लिए माइक्रोबायोलॉजी लैब तक नहीं है। इस तरह की जांचों को दो घंटे के अन्दर लैब में पहुँचाना होता है। सबसे नज़दीक लैब मैसूर में है जहाँ खाद्य विभाग का सैंपल पहुँचाना नामुमकिन है। मध्यप्रदेश में ख़राब हुई खाद्य सामग्री की जांच के लिए नाक से सूघने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं है।
डॉ वर्मा ने कहा कि अपना स्वीट ने मुझे 25 लाख का मानहानि का नोटिस दिया है जो मेरे द्वारा खाद्यविभाग को कि गई शिकायत को लेकर मिला है। उन्होंने कहा कि 30 दिसम्बर को अपना स्वीट से 120 रुपए में 400 ग्राम जलेबी ली और घर जाकर जैसे ही खाई उसमे खराब स्वाद व दुर्गन्ध महसूस हुई। दूकान पर पहुंचे तो देखा की मेरे अलावा और भी लोग जलेबी लौटाने आए हैं। तब मैंने खाद्य अधिकारी को फोन पर शिकायत की तब सहायक अधिकारी नर्सिंग सोलकी ने आकर सेम्पल लिया। परन्तु उन्होंने सेम्पल में फॉर्मलीन मिला दिया जिससे सेम्पल नष्ट हो गया। जलेबी में फॉर्मिलीन मिलने से किसी भी खध्यपदार्थ के बैक्टेरिया ही खत्म हो जाते है।
जब इस बात की जानकारी लेने के लिए भोपाल डिप्टी डाइरेक्टर से बात की तो बड़े चौकने वाला खुलासा मिला, जिसमे डिप्टी डाइरेक्टर ने कहा कि मध्यप्रदेश में माइक्रो बायोलॉजी टेस्ट की कोई शासकीय लेब नही है तो दूषित खध्यपदार्थ की जांच नही की जा सकती। अब सवाल यह है कि खाद्य विभाग आखिर जांच के नाम पर प्रदेश की जनता के साथ गुमराह क्यों करते है ।
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