देवास। देवास विकास प्राधिकरण के अधिकारीयों और तब के संचालकों ने ऐसा खेल किया था की करोड़ों की जमीने योजनाओं से मुक्त हो कर भूमाफिया के हाथों में चलीं गई। इसका असर यह हुआ की प्राधिकरण कंगाल हो गया और अधिकारी और नेता मालामाल हो गए। मामला उजागर होने के बाद अब बड़ी जांच की सुगबुगाहट है।
हाल ही में बिलावली स्थित जो कृषि भूमि विवादित होकर चर्चा में आई है, उसे देवास विकास प्राधिकरण के तत्कालीन संचालक मंडल व मुख्य कार्यपालन यंत्री ने सांठगांठ कर योजना से मुक्त किया था और इसकी एवज में लाखों रुपये का लेनदेन भी हुआ था। यह जमीन शहर काजी इरफान अहमद अशरफी को भरण-पोषण हेतु दी गई थी। अब चूंकि प्राधिकरण का यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया, ऐसे में जमीन की खरीदी-बिक्री शुरु हो गई है।
भरण-पोषण के लिए मिली कीमती जमीन को बेचने की साजिश
योजना से मुक्त हुई बिलावली स्थित पटवारी हल्का नं. 41 सर्वे नं. 203 की कुल रकबा 5.002 हेक्टर कृषि भूमि जो कि काजात एहतनाम की भूमि होकर सीनियर शहर काजी इरफान अहमद अशरफी को भरण-पोषण हेतु दी गई थी, इस जमीन को बेचने की तैयारी की जा चुकी है। इस जमीन की रजिस्ट्री का निष्पादन होता, इससे पहले एक आरटीआई कार्यकर्ता अजय शर्मा ने न सिर्फ शिकायत कर दी, बल्कि आपत्ति भी दर्ज करा दी है। लिहाजा बिक्री का यह मामला खटाई में पड़ता नजर आ रहा है।
जमीन मुक्त करने का घोटाला उजागर
देवास विकास प्राधिकरण में योजना से जमीनों को मुक्त करने के षड्यंत्र पर से भी पर्दा उठने लगा है। इस कारण तत्कालीन संचालक मंडल व अधिकारियों में हडक़ंप मचा हुआ है, क्योकि अब सरकार बदल चुकी है और यदि कांग्रेस सरकार इस पूरे मामले की जांच करवाती है तो निश्चित रूप से करोड़ों का गोलमाल सामने आ सकता है।
जमीन वापस लेने से कई योजनाएं बंद हुईं, विकास प्राधिकरण कंगाल हुआ
मप्र राजपत्र दिनांक 22 अप्रैल 1994 में कुल जमीन 93.27 हेक्टर शासकीय योजना में शामिल की गई थी, जिसमें से उस समय 50 प्रतिशत जमीन का अधिग्रहण भी कर लिया गया था तथा देवास विकास प्राधिकरण ने प्रोजेक्ट तैयार किया था, जिसमें ट्रांसपोर्ट नगर, न्यू देवास झोन क्रमांक 1, 2 व 3 शामिल किए गए थे। इसी जमीन में कलेक्टर कार्यालय भी प्रस्तावित था। योजना में शामिल कृषि भूमि की बिक्री पर पूर्णत: प्रतिबंध लग चुका था। इस कारण कई व्यापारी व कृषक छटपटा रहे थे। इसी बीच 2013 में देवास विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर डिप्टी कलेक्टर सी.के. गुप्ता की ताजपोशी हो गई। उस समय प्राधिकरण के संचालक मंडल में भाजपा नेता काबिज थे। इसी दौरान योजना में शामिल जमीनों को ले-देकर मुक्त करने का खेल शुरु हुआ और इसी क्रम में 31 मार्च 2013 को शहरकाजी इरफान अहमद अशरफी ने पटवारी हल्का नं. 41 में सर्वे नं. 203 रकबा 5.002 हेक्टर जमीन को योजना से मुक्त करने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया। इस आवेदन के तीन दिन बाद 2 अप्रैल 2013 को प्राधिकरण ने शहरकाजी को एक शासकीय पत्र दिया, जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि उक्त भूमि योजना में समाविष्ट है, इसीलिए देवास विकास प्राधिकरण द्वारा इस भूमि को योजना से मुक्त करने का प्रावधान नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम में नहीं है। अत: आपके द्वारा प्रस्तुत आवेदन अमान्य करते हुए नस्तीबद्ध किया जाता है। प्राधिकरण द्वारा यह पत्र तो दे दिया गया।
कोर्ट का सहारा लेकर खेल यहाँ से शुरू हुआ
तत्कालीन सीईओ द्वारा अपना हाथ बचाते हुए उक्त जमीन को योजना से मुक्त करने के लिए एक बड़ा षड्यंत्र रचा गया, जिसमें प्राधिकरण को तो लाखों की हानि हुई, किंतु अन्य लोगों को अतिरिक्त लाभ पहुंचाया गया। षड्यंत्र के अनुसार बिलावली व जेतपुरा स्थित कृषि भूमि के 9 मालिकों को हाईकोर्ट जाने का रास्ता दिखा दिया और जब इन लोगों ने हाईकोर्ट में अपील की तो देवास विकास प्राधिकरण की ओर से अपना पक्ष मजबूत तरीके से नहीं रखा गया। फलस्वरूप हाईकोर्ट का फैसला प्राधिकरण के खिलाफ व प्रभावशाली लोगों के पक्ष में चला गया, जो कि प्राधिकरण के तत्कालीन संचालक मंडल व सीईओ भी चाहते थे। बताया जा रहा है कि उस समय प्राधिकरण ने अपने वकील के माध्यम से उच्च न्यायालय में पर्याप्त दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए थे और ना ही साक्ष्य उपलब्ध कराए थे। इस कारण प्राधिकरण को मुंह की खानी पड़ी थी और जमीन मालिकों के हक में फैसला आ गया था। इसी आधार पर महज तीन माह बाद ही 23 जुलाई 2013 को देवास विकास प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ व संचालक मंडल ने उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए सर्वे नं. 203 की जमीन को योजना से मुक्त करने की एनओसी जारी कर दी गई। इसी तरह सभी 9 जमीन मालिकों को उस समय एनओसी दी गई थी। बताया जाता है कि इस खेल में करोड़ों का लेनदेन हुआ था और तत्कालीन संचालक मंडल व सीईओ के बीच कमीशन की राशि का बंटवारा भी हुआ था और इस बंटवारे के दौरान भी असंतोष उपजा था, यह मामला बाद में तत्कालीन दिवंगत विधायक तुकोजीराव पवार तक गया था और फिर उनके द्वारा इस मामले की उच्च स्तरीय शिकायत की गई। जिसके आधार पर तत्कालीन सीईओ सी.के. गुप्ता की रवानगी कर दी गई थी, किंतु बड़ी कार्यवाही होती, इससे पहले ही जांच को प्रभावित कर दिया गया।
कईयों ने बेच दी जमीन लेकिन शहरकाजी अटक गए
जमीन मालिकों ने एनओसी मिलते ही जमीनों को बेचने का काम प्रारंभ कर दिया था। कुछ जमीन मालिक तो जमीन बेचकर वारे-न्यारे हो चुके है, किंतु शहरकाजी ने काजात एतनाम की भूमि का इंदौर के एक बाहुबली को जैसे ही सौदा किया, वैसे ही शहर के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने इस पूरे मामले की कलेक्टर से लेकर संभागायुक्त तक शिकायत कर दी। अपनी आपत्ति में आरटीआई कार्यकर्ता शर्मा ने तर्क दिया है कि चूंकि उक्त भूमि शहरकाजी को अपने व परिवार के भरण-पोषण के लिए दी गई थी, इसीलिए वह इस भूमि को बेचने का अधिकार नहीं रखते है। शर्मा ने यह भी दावा किया है कि यदि स्थानीय प्रशासन इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो वे इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की शरण भी लेंगे।
COMMENTS