देवास। पद्मावती फिल्म को लेकर करणी सेना द्वारा किए गए आंदोलन के बाद जिलाधीश एवं जिला दण्डाधिकारी देवास द्वारा गत 30 जनवरी 2018 को कांग्रेसी नेता व करणी सेना के पदाधिकारी उमेश प्रतापसिंह पर रासुका लगा दी थी।
इस कार्यवाही के बाद राजपूत संगठनों के साथ ही कांग्रेस ने भी विरोध दर्ज कराते हुए रासुका निरस्त करने की मांग की थी, किंतु भाजपा शासनकाल में प्रशासन ने इस मांग को ठुकरा दिया था। फिर मजबूर होकर गौड़ को हाईकोर्ट की शरण लेना पड़ी, जहां पर गौड़ के अधिवता विवेक सिंह ने दलील दी कि उमेश गौड़ पर रासुका लगाने से पहले न तो नोटिस दिया गया और ना ही उनका पक्ष सुना गया। साथ ही उन पर ऐसे कोई प्रकरण नहीं थे, जिनके आधार पर रासुका लगाई जा सके, जो प्रकरण उनके खिलाफ थे, उनमें या तो वे बरी हो चुके थे या फिर खात्मा हो चुका था। बावजूद इसके जिला प्रशासन द्वारा रासुका की कार्यवाही की गई।
अधिवता विवेक सिंह ने मप्र व केरल में हुए दो निर्णयों का हवाला भी दिया। इन्हीं सभी तर्कों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय इंदौर द्वारा 19 दिसंबर 2018 को जिलाधीश कार्यालय द्वारा संस्थित रासुका अधिनियम कानून 1980 के प्रकरण में आदेश जारी करते हुए याचिकाकर्ता उमेश प्रतापसिंह गौड़ के विरुद्ध रासुका अधिनियम 1980 के तहत की जाने वाली समस्त कार्यवाहियों को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने के आदेश जारी किए गए। गौड़ के अधिवता ने हाईकोर्ट के आदेश की प्रति भी जिलाधीश के साथ ही पुलिस अधीक्षक व बीएनपी थाना टीआई को सौंप दी है।
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